शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मेयर के इशारे पर नाचे काकू


महाशिवरात्रि के अवसर बाबा की बारात में शामिल होने के लिए अपने ज़माने के सुपर स्टार राजेश खन्ना बाबा की नगरी देवघर आये थे. जम कर शराब पी लेने के कारण वे बारात में शामिल नहीं हो पाए. इसका भारी खामियाजा उन्हें अगले दिन भुगतना पड़ा. अपने ज़माने में उन्होंने भले ही निर्माताओं को अपनी अँगुलियों पर नचाया हो, लेकिन यहाँ उन्हें देवघर के मेयर के इशारे पर नाचना पड़ा. अगले दिन सुबह उन्हें मुंबई लौटना था, लेकिन दवाब पर उनका टिकट रद्द करना पड़ा. बारात में शामिल नहीं होने के कारण अगले दिन उन्हें न सिर्फ नाचना पड़ा, बल्कि उनसे डिजनीलैंड मेले का उदघाटन भी करवाया गया. आयोजक ने उदघाटन के लिए देवघर के मेयर को चुना था. उदघाटन समारोह के लिए जो कार्ड छपवाया गया था, उसमें राजेश खन्ना का कहीं नाम नहीं था. लोगों को ऐसी उम्मीद भी नहीं थी. लेकिन बिन बुलाये मेहमान के रूप में काकू को देखकर लोग फुले न समा रहे थे. 
हद तो तब हो गयी जब मेयर को आमरण अनशन पर बैठे विस्थापितों को मनाने के लिए मेयर के इशारे पर जाना पड़ा. देवघर के ये विस्थपित पुसनी में डैम निर्माण का विरोध कर रहें हैं. उनका मानना है कि अजय नदी पर इस डैम के बन जाने से बड़े पैमाने पर लोग विस्थापित  होंगे. वे सर्कार कि विस्थापन नीति का भी विरोध कर रहे हैं. 
यह अलग बात है कि विस्थपितों को लुभाने के लिए काकू का ग्लैमर भी काम नहीं आया, लेकिन काकू की फजीहत तो हो ही गयी. 
हाँ, कुछ दिनों पहले देवघर के मेयर ने झारखण्ड के डिप्टी सीएम से एक चुम्मा माँगा था लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी थी. यह कमी उन्होंने काके से पूरी कर ली. उन्होंने काकू को भींचकर चुम्मा ले लिया. आकिर काकू को मोटी रकम देकर जो उन्होंने बुलाया था.                         

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

रोटियाँ

सरदे आलम


जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ
फूली नही बदन में समाती हैं रोटियाँ
आँखें परीरुख़ों से लड़ाती हैं रोटियाँ
सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियाँ

...जितने मज़े हैं सब ये दिखाती हैं रोटियाँ
रोटी से जिस का नाक तलक पेट है भरा
करता फिरे है क्या वो उछल कूद जा ब जा
दीवार फाँद कर कोई कोठा उछल गया
ठठ्ठा हँसी शराब सनम साक़ी इस सिवा

सौ सौ तरह की धूम मचाती हैं रोटियाँ
जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर है
ख़ालिक़ के कुदरतों का उसी जा ज़हूर है
चूल्हे के आगे आँच जो जलती हज़ूर है
जितने हैं नूर सब में यही ख़ास नूर है

इस नूर के सबब नज़र आती हैं रोटियाँ
आवे तवे तनूर का जिस जा ज़बां पे नाम
या चक्की चूल्हे का जहाँ गुलज़ार हो तमाम
वां सर झुका के कीजिये दंडवत और सलाम
इस वास्ते कि ख़ास ये रोटी के हैं मुक़ाम

पहले इन्हीं मकानों में आती हैं रोटियाँ
इन रोटियों के नूर से सब दिल हैं पूर पूर
आटा नहीं है छलनी से छन छन गिरे है नूर
पेड़ा हर एक उस का है बर्फ़ी-ओ-मोती चूर
हरगिज़ किसी तरह न बुझे पेट का तनूर

इस आग को मगर ये बुझाती हैं रोटियाँ
पूछा किसी ने ये किसी कामिल फ़क़ीर से
ये मेह्र-ओ-माह हक़ ने बनाये हैं काहे के
वो सुन के बोला बाबा ख़ुदा तुझ को ख़ैर दे
हम तो न चाँद समझे न सूरज हैं जानते

बाबा हमें तो ये नज़र आती हैं रोटियाँ
फिर पूछा उस ने कहिये ये है दिल का नूर क्या
इस के मुशाहिदे में है खुलता ज़हूर क्या
वो बोला सुन के तेरा गया है शऊर क्या
कश्फ़-उल-क़ुलूब और ये कश्फ़-उल-कुबूर क्या

कश्फ़=प्रदर्शन; क़ुलूब=हृदय
जितने हीं कश्फ़ सब ये दिखाती हैं रोटियाँ
रोटी जब आई पेट में सौ कन्द घुल गये
गुलज़ार फूले आँखों में और ऐश तुल गये
दो तर निवाले पेट में जब आ के धुल गये
चौदा तबक़ के जितने थे सब भेद खुल गये

ये कश्फ़ ये कमाल दिखाती हैं रोटियाँ
रोटी न पेट में हो तो फिर कुछ जतन न हो
मेले की सैर ख़्वाहिश-ए-बाग़-ओ-चमन न हो
भूके ग़रीब दिल की ख़ुदा से लगन न हो
सच है कहा किसी ने कि भूके भजन न हो

अल्लाह की भी याद दिलाती हैं रोटियाँ
अब जिन के आगे मालपूये भर के थाल हैं
पूरी भगत उन्हीं की वो साहब के लाल हैं
और जिन के आगे रौग़नी और शीरमाल है
आरिफ़ वोही हैं और वोही साहब कमाल हैं

पकी पकाई अब जिन्हें आती हैं रोटियाँ
कपड़े किसी के लाल हों रोटी के वास्ते
लम्बे किसी के बाल हैं रोटी के वास्ते
बाँधे कोई रुमाल है रोटी के वास्ते
सब कश्फ़ और कमाल हैं रोटी के वास्ते

जितने हैं रूप सब ये दिखाती हैं रोटियाँ
रोटी से नाचे पियादा क़वायद दिखा दिखा
असवार नाचे घोड़े को कावा लगा लगा
घुँघरू को बाँधे पैक भी फिरता है नाचता
और इस के सिवा ग़ौर से देखो तो जा ब जा

सौ सौ तरह के नाच दिखाती हैं रोटियाँ
दुनिया में अब बदी न कहीं और निकोई है
न दुश्मनी व दोस्ती न तुन्द खोई है
कोई किसी का और किसी का न कोई है
सब कोई है उसी का कि जिस हाथ डोई है

नौकर नफ़र ग़ुलाम बनाती हैं रोटियाँ
रोटी का अब अज़ल से हमारा तो है ख़मीर
रूखी भी रोटी हक़ में हमारे है शहद-ओ-शीर
या पतली होवे मोटी ख़मीरी हो या कतीर
गेहूं जुआर बाजरे की जैसी हो ‘नज़ीर‘
हम को सब तरह की ख़ुश आती हैं रोटियाँ.और देखें