बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

छेदना के लिए

सच्चिदानंद
 काश, छेदना भी उड़ पाता जहाज पर
काश छेदना भी जा पाता दिल्ली
घूम आता अमरीका से
देख आता आगरे का ताजमहल
लेकिन छेदना के लिए तो गोड्डा भी दूर था
सुसनी  से सुन्दरपहाड़ी जाने में भी होती थी कठिनाई
अपने पैरों का ही भरोसा था- कहीं आने-जाने के लिए

कहते हैं कि छेदना भूख से मर गया
डाक्टर कहते हैं कि वह कुपोषित था
कई बीमारियों की वजह से उसकी मौत हुई

बात जो भी हो \ लेकिन यह सब उस समय हुआ था
जब हमारे देश में
हवाई जहाज में चढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई थी
वैश्विक मंदी का दौर भी था
बड़ी-बड़ी कम्पनियों में
भरी संख्या में लोगों की छुट्टी की जा रही थी
लेकिन कार के साथ कलर टीवी मुफ्त में बांटे जा रहे थे
कम्पनी की ओर से ग्राहकों का बिमा कराया जा रहा था
साबुन के साथ साबुन व तेल के साथ शैम्पू
देने का चलन तो पहले ही शुरू हो चुका था

लेकिन छेड़ना के पड़ोसी की मानें तो,
 उसे दो महीने तक अन्न के दर्शन तक नहीं हुए थे
जब छेड़ना ने बिस्तर पकड़ा तो
पड़ोसियों ने उसे दो-चार दिन तक भोजन कराये 
लेकिन वे भी कितना दिन खिला सकते  थे
दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद
इतने पैसे नहीं बचते थे कि अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके
लोग बताते हैं कि छेदना की एक कुपोषित बेटी
भोजन नहीं मिलने के कारण
पहले ही दम तोड़ चुकी थी
डाक्टर इस बात से चकित थे कि
छेदना इतने दिनों तक जिन्दा कैसे रहा
यह सब उस समय हो रहा था
जब चाँद पर जमीन खरीदने की बात हो रही थी
अपने परिवार के साथ फाइव स्टार होटल में
खाना खाने वोले लागों की संख्या में वृद्धि हुई थी

असल में
इन सबके बीच एक गहरी खाई थी
पहले से कहीं ज्यादा गहरी
जो गहरी दिखती नहीं थी.

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