गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

शरद पूर्णिमा की रात

सच्चिदानंद
अच्छा है कि आज
शहर में नहीं है बिजली
और जवान है शरद पूर्णिमा कि रात
अगर आयेगी बिजली
तो बुझा लो अपनी-अपनी बत्ती
भेज दो बिजली को वहां
जहाँ हो आमावस

आओ,
लिखें एक कविता
ओस से नहाये हुए धन के पौथों के बीच
उसके जूडे में सिंगरहार लगाने की
लेकिन यहाँ नहीं है धनखेत
खुली हुई छत पर पसरी हुई है चांदनी
तो आओ,
इस दूधिया रोशनी में लिखें
चांदनी बचाने की कविता
पसरे हुए सिंगरहार की खुशबू से
मह-मह करते आँगन की कविता
आओ,
इस सिहरन भरी रात में लिखें
कल-कल बहती कोसी-कमला की कविता
खिलखिलाती हुई धरती की कविता

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