बालक देश या समाज की महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं। बालक आने वाली पीढ़ी के सदस्य है, उनकी समुचित सुरक्षा, लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा व पर्याप्त विकास का दायित्व भी समाज का होता है। यही बच्चे देश के निर्माण में आधार स्तंभ बनते हैं। देश में बाल-कल्याण को प्रमुखता प्रदान करने के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस को प्रति वर्ष बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे दुखद पहलू यह है कि विश्व के कुल बाल श्रमिकों का एक बड़ा भाग भारत में है। कल-कारखाने, गैराज, चाय दुकान सहित अनेक प्रकार के लघु व कुटीर उद्योंगो तथा घरेलू कामों में लगे हुए गुलामों जैसा जीवन जी रहे हैं। बाल श्रमिकों के बारे में कहा जाता है कि ये वे किशोर नहीं हैं जो दिन के कुछ घंटे खेल और पढ़ाई से निकालकर जेब खर्च के लिए काम करते हैं, बल्कि ये वे मासूम बच्चे हैं जो वयस्कों की जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। दस से अठारह घंटे काम कर कम पैसे में अधिक श्रम बेचते हैं।सप्ताह में तीन से चार दिन सहयात्री रिपोर्ताज पेश करने की कोशिश करेगा. इस मंच पर रिपोर्ताज लिखने वाले लेखकों/पत्रकारों का स्वागत है.
शुक्रवार, 19 सितंबर 2014
गुलामों जैसा जीवन जी रहे है बाल श्रमिक
बालक देश या समाज की महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं। बालक आने वाली पीढ़ी के सदस्य है, उनकी समुचित सुरक्षा, लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा व पर्याप्त विकास का दायित्व भी समाज का होता है। यही बच्चे देश के निर्माण में आधार स्तंभ बनते हैं। देश में बाल-कल्याण को प्रमुखता प्रदान करने के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिवस को प्रति वर्ष बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे दुखद पहलू यह है कि विश्व के कुल बाल श्रमिकों का एक बड़ा भाग भारत में है। कल-कारखाने, गैराज, चाय दुकान सहित अनेक प्रकार के लघु व कुटीर उद्योंगो तथा घरेलू कामों में लगे हुए गुलामों जैसा जीवन जी रहे हैं। बाल श्रमिकों के बारे में कहा जाता है कि ये वे किशोर नहीं हैं जो दिन के कुछ घंटे खेल और पढ़ाई से निकालकर जेब खर्च के लिए काम करते हैं, बल्कि ये वे मासूम बच्चे हैं जो वयस्कों की जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। दस से अठारह घंटे काम कर कम पैसे में अधिक श्रम बेचते हैं।
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