सप्ताह में तीन से चार दिन सहयात्री रिपोर्ताज पेश करने की कोशिश करेगा. इस मंच पर रिपोर्ताज लिखने वाले लेखकों/पत्रकारों का स्वागत है.
शनिवार, 7 अगस्त 2010
जागे कोइ इश्क दा मारा
जागे कोइ इश्क दा मारा
या जागे बीमार...
देवघर. एक ऐसा शहर जो रात भर जगता है.
इसे नीद भी आती है
तो कुछ पल के िलए.
जब सारी दुिनया सोती रहती है
देवघर पराती गा क्र जग की तंद्रा तोरता है. कुमार राहुल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें